क्र. स. | धर्मग्रन्थ | पेज नं. | अध्याय, खण्ड | लेखक, टीकाकार | विवरण |
१. | संक्षिप्त पद्म पुराण | २९८
२९९ |
भूमि खण्ड | इन्द्रलोक, ब्रह्मलोक, शिवलोक, विष्णुलोक- दाह और जलप्रलय से रहित है ! | |
२. | सं. स्कन्द पुराण | २५२ | वैष्णव खण्ड | पुरुषोत्तम क्षेत्र स्रष्टि और प्रलय में आक्रान्त नहीं होता है ! | |
३. | ऋग्वेद सं. १० | ५१३
५१४२ |
सूक्ति १८, श्लोक ११
अ २ श्लोक १३ |
| “यह भूमि अमैथुनी………उफनी रहती है !”
“हे मनुष्यों तुम्हारे लिये प्रथ्वी को दृढ करता हूँ ! …प्रथ्वी तुम्हारे ऊपर नहो ! तथा तुम्हें कोई कष्ट नहो ! इस प्रथ्वी को आकर्षण शक्तियां धारण करती हैं, इसे जगनिन्यता मैंने तुम्हारे रहने का स्थान बनाया है ! |
४ | श्री विष्णु पुराण | १४२
४०८ |
अ० २ श्लोक ५४ से ५६ तक
अ० ११ |
| “वहां के लोग दस –बारह हजार वर्ष की आयु के होते है ! ……नदियाँ हैं !!
कृष्ण ने गोपों से कहा – “आओ पर्वत के नीचे स्थान कर दिया है वायु हीन स्थान पर आकर सुख पूर्वक बैठ जाओ ! निर्भय हो प्रवेश करो पर्वत के गिरने आदि का भय न करो !!” |
५. | शुकसागर श्रीमद भागवत | ११६६ | स्कन्द १० अनुच्छेद ७९
श्लोक २६ |
“धर्मराज वह पवित्र अविनाशी …..और आदि स्थान है ! | |
६. | महा शिवपुराण | रूद्र सं.२ अ.६ | ……..काशी कहते है प्रलय आदि में …….!! | ||
७. | श्रीमद् देवी भागवत | ८९५ | सप्तम् स्कन्द | “भूमंडल .……………. परम पुनीत स्थल है !“ | |
८. | श्री शिवपुराण बम्बई प्रेस | ५८९ | अष्टम खण्ड अ. ३३ | बम्बई प्रेस | पांच कोस अविनाशी क्षेत्र को भगवान शंकर धारण करते है! |
९. | ऋग्वेद म० १० | सूक्त १८ श्लोक १३ | हे मनुष्यो तुम्हारे लिए …………….. रहने का स्थान बनाया है | | ||
१०. | दुलनदास जी शब्द संग्रह | “साईं तेरो गुप्त मर्म हम जानी, निज घर है …..!” | |||
११. | सारवचन छन्द बन्द भाग १ | २६५ | |||
१२. | शब्द संग्रह दादू दयाल | भाई रे घर में ही घर पाया,
सतगुरु समाय रह्यो ता मांही, सतगुरु खोजि बताया | खोलि कपाट महल के दीन्हे, थिर स्थान दिखाया || ………………………….. |
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१३. | सामवेद संहिता | ४८९ | “इन्द्र धुलोक अचल स्थान में निवास करता है !” | ||
१४. | ऋग्वेद मं. ८ | ८४६ | सूक्ति १०३, श्लोक ५ | “बहुतों को बसाने वाले परमेश्वर ! जिसने आप को अपना सब कुछ सोंप दिया है वह उपासक सुद्रढ स्थान से भी सुरक्षित स्थान में एश्वर्य को ग्रहण कर लेता है ! हम उपासक भी परमदानी आप के आश्रय में उत्तम- उत्तम पदार्थ सदा प्राप्त करते रहें !!” | |
१५. | सत्यार्थ प्रकाश | २१५ | अष्टम समुल्लास | ऋग्वेद मं. १०, सूक्ति -८५ श्लोक १
“सत्येनोत्र्मित्रा भूमि:!” जिसका कभी नास नहीं होता है …! |
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१६. | अथर्व वेद भाष्ये | ४७२ | द्वादश काण्डम सूक्ति १ श्लोक ७ | “ देव भूमि “ देवता अचूक बचाते है ! |