पुरूष विशेष (गुरू या निष्कलंक अवतार) पहचानः व्यावहारिक पहचान

व्यावहारिक पहचान

  • वह अपने नाम के आगे श्री श्री 108 श्री, महामण्डलेश्वर आदि उपाधि नहीं लगायेगा।
  • कभी किसी से किसी प्रकार की दक्षिणा या फीस या चढ़ावा नहीं लेगा।
  • स्वयं को गुरू नहीं कहलवायेगा। अपने आपको संदेशवाहक कहेगा। सारशब्द ही गुरू होगा-ध्वन्यात्मक।
  • किसी को चेला या शिष्य नहीं बनायेगा। सबको अपने समान कर देगा।

पारस और सन्त में बड़ौ अन्तरौ जान।

वह लोहा सोना करे, वह करले आप समान।।

  • हीरा कबहु ना कहे, लाख टका मेरौ मोल।
  • हीरा की परख जौहरी ही जानता है –
    • जौ – जो स्वयं
    • हरी – विष्णु
    • जौहरी का अर्थ है जो स्वयं हरी है।
      • गृहस्थी
      • गुरू सत्ता जिस चोले में आती है उसका अपना घर नहीं होगा।

धन-धन भोलानाथ तुम्हारे कौड़ी नहीं खजाने में।

तीन लोक बस्ती बसा प्रभु, आप बसे बीराने में।।

  • पैतृक हिसाब से जो घर होता है उसके हिस्से का घर अवतार स्थली होने से वह घर शून्य हो जाता है जिसे गृहस्ती कहते हैं।
  • वह सर्व धर्मगन्थों का पूर्ण ज्ञाता होगा।
  • सर्व धर्मग्रन्थों का ज्ञाता ही नही ंसमस्त स्थलों को एक जगह एक ही सिद्ध कर देगा।
  • वो व्यर्थ बकवास, गाली-गलौज नहीं करेगा।
  • शाब्दिक अर्थानुसार भावार्थ सार को जानने का क्रम सिद्ध करेगा।
  • मान देगा पर मान की इच्छा नहीं करेगा।
  • समदर्शी होगा।
  • वो व्यसनों से दूर होगा। जैसे- गांजा, अफीम, चरस, शराब आदि।
  • शुद्ध शाकाहारी भोजन करने वाला होगा।
  • पुरूष विशेष का व्यवहार ही सत्यधर्म का अर्थ प्रस्तुत करेगा।
  • वह इच्छा विहीन होगा।
  • सत्य का अवलोकन करने वाला होगा।
  • सत्य के दो पक्ष सांसारिक सत्य तथा वास्तविक सत्य का ज्ञाता होगा।
  • स्वाभाविक ही मानवीय गुणों से सम्पन्न होगा।
  • पुरातन ज्ञान का अधिष्ठाता होगा।