Date : 24.12.2024
अपनों के सपने हो जाये,
गैरों की कोई कमी नहीं।
हरिनाम असमंजस में क्यों,
जहाँआरा से जाना नहीं।।
सुरों के यहां रिश्ते सोलह,
असुरों के नाता कोई नहीं।
हरिनाम समझलो अच्छी तरह,
जवां का जवां कुछ लगता नहीं।।
करे काम शैतान का,मिलन चहे रह मान।
हरिनाम कमी पावे नहीं,ओ मूरख नादान।।
मन प्रमाद पैदा करे,अरु प्रमाद से हानि।
हरिनाम हानि से दोष हो,सभी दुखों की खानि।।
तुम्हारे भाग्य में बर था ही नहीं,
मुझे जोड़-जाड़ के तुमको दिया।
वो भी पसंद नहीं तो क्या,
हरिनाम करेंगे वाह ही वाह।।
तुम मिले सारी दुनिया मिली,
हरिनाम दिल मिला, सारी बगिया मिली।।
पूर्ण मंगली संकट लिया,गुलंदामे हुक्म से।
हरिनाम जेवर फंस गया, दुल्हन मिली ना दहेज मिला।।
सोते सोते गई जिंदगी,
अब तो जागो भोर हुआ।
हरिनाम कहीं कल्कि आया,
अब तो भारी शोर हुआ।।
फकीरी से शहंशाही मिले,
शहंशाही से नर्क।
हरिनाम सोच समझ लो,
होगा बेड़ा-गर्क।।
फर्ज को निभाओगे,
मर्ज को भगाओगे।
हरिनाम अर्ज है यही,
जहां दुनिया जाती जां चली जाएगी।।
ना कोई सुख जप तप करने में.
ना कोई सुख तीर्थ वन जाय..
ना कोई सुख धर्म संप्रदाय में.
सुख तो है केवल ज्ञान के माय..
ना कोई सुख एकांतवास में.
ना कोई सुख जगत मेले जाय..
ना कोई सुख मंदिर मस्जिद गिरजा मे.
यह सब धर्म लोका चार व्यवहार माय..
बिना आत्म विवेक विचार किये बिना.
जन्म जन्म लाख 84 योनी दुख पाय..
सर्व सुख हे ब्रह्म ज्ञान आत्म तत्व मे.
पूर्ण सतगुरु की कृपा से दर्शन पाय..
कहे कबीर दर्श होया पिव पिया का.
अब हमारा जन्म मरण दुख नाय..
Date : 25.12.2024
हरिनाम शवे- हिज्र पर,सख्त घड़ी है।
सर पर है मुर्शिद,अजल दर पर खड़ी है।।
मुर्गे-दिल मोहब्बत,सैले-अश्क-जारी है।
हरिनाम बे मौसम भी,बरसात जारी है।।
बेवफाई बेरुखी के,आवरण पहने हैं जो।
कत्ल कर देगी तुरत, तेगे नजर हरिनाम की।।
वादे फना हो जिंदा,इस जहान में।
हरिनाम के बजूद से,हरिनाम बोलेगा।।
शरशारी अनोखी है,अनोखी है अदा।
इश्क के सैलाब में,हरिनाम कोई क्या करे।।
रमा घर गए नहीं,हरिनाम छत्रि पर ठग गये।
खत्री दर पर होगा क्या, ये ही परेखे रह गये।।
चक्रवर्ती की नारी,क्यों डोले मारी-मारी।
हरिनाम क्या करे,इसमें मर्जी है तुम्हारी।।
तुम तुम्हारे बाधक,साधक की है तैयारी।
खाक मुल्क कर दूँगा,बस रजा है तुम्हारी।
बिना जतन मिलता।
नहीं वह प्यार महबूब।।
सतगुरु की दया बिना।
मार्ग घर बहुत है दूर।।
मुझको कहां ढूंढे रे बंदे,।
मैं हूं तेरे पास में।।
ना तीर्थ में ना मूरत में,।
ना एकांतवास में।।
नाम मंदिर में ना में मस्जिद,।
ना काशी कैलाश में।।
ना में जप में ना तप में।
ना व्रत में उपास।।
नाम में क्रिया कर्म में।
ना योग में सन्यास में।।
ना में पिंड में प्राण में ।
ना ब्रह्मांड आकाश में।।
ना में त्रिकुटी भंवर गुफा में।
ना स्वास की स्वास में।।
खोजी हो पल में मिल जाऊं।
एक पल की तलाश में।।
कहे कबीर सुनो भी संतो।
मैं तो हूं विश्वास में।।
Date : 26.12.2024
गरूर शेखी सरकसी में,
जाके क्यों फंसता।
गुलदस्ते से भी सस्ता,
हरिनाम का रस्ता ।।
रूहानी रास्ते के,
हरिनाम हमसफर जो।
बाग लगाते हैं,
उजाड़ा नहीं करते।
क्या है सहने गुलशन में,
जानना कोई चहे।
आंख का पर्दा हटे,
हरिनाम का दीदार है।।
हरगिज नहीं हरिनाम,
बेवफाई का शिकवा।
गिला तब हो कि,
रंजोगम से कोई खाली हो छोड़ा।।