शेर-गजल

इब्तिदाऐ – इश्क का आलम है ! हरिनाम इन्तिहा में कुछ वक्त लगता है !!

हसरते दीदार में हरिनाम की रूहें ! खुद खुदा के राज  को जेहाद करेगी !!

हरिनाम शिवे हिज्र पर सख्त घड़ी है !  सर पर है मुर्शिद अजल दर पर खडी है !!

मुहब्बत में आंशू निकले शवे- गम का दौर है !  दम पर दम हरिनाम चल अभी रास्ता और है !!

बे बफाई बे रुखी का आवरण पहिने है जो ! क़त्ल कर देगी तुरत तेगे नजर हरिनाम की !!

अहले –जाहिर इश्क के हालात जाहिर नहीं करें ! हरिनाम जाहिर जो करें इश्क को जाना नहीं !!

अफसाना ए- नाकामे –शौक़ ये जहां आखिर !  हरिनाम क्यों भटकता , मुश्ते-गुबार में !!

क्या है हरिनाम ये कुछ न पूछिये, यदि पूछते ही हो – !

गुलशन परस्त है, गुलशन परस्त है, गुलशन परस्त है !!

क्या है शहने गुलशन में जानना कोई चहे ! आँख का पर्दा हटे हरिनाम का दीदार है !!

शैतान वाकियात, इस वक्त है जारी, घवड़ाओ नहीं, हरिनाम खुदा खैर करेंगे !!

शम्सो करम दस्त वस्ता, खीजल भी बदरंग भी ! हरिनाम रोशनी खुदाई फैज के कारण !!

 

रूहानियत कयामत का , कद है ऐ लोगो !  तू ले सफर हरिनाम अब नजदीक आया है !!

हर वजह हरिनाम की रूहानियत की है ! खुदाई हुक्म है हरिनाम इसमें क्या करें !!

जहां का आशिक घना, नहीं इश्क है हरिनाम से ! जल्वा गाहे नाज़ क्यों, बकवाद करता है !!

 

नैरंग –ए-दो आलम, आलम हरिनाम है यारो !  चढ़ चले कोहेतूर, के जरिये !!

फ़क़त मुर्शिद खुदाई नूर का हरिनाम सितारा !  उस रु-ए-ताब नाक की सुबहे बहार है !!

मैं हूँ तेरा तू है मेरा कोई जाने तो क्या जाने !  इश्क सैलाब में डूबा, कोई  हरिनाम पहिचाने !!