Date: 01.01.2025
जब तन थिर अपना कर न सके,
तो मन थिर करता क्या जानें।
जब मन थिर अपना हो न सके,
तो बचन थिर करना किस माने।।
आया थिर होना त्रिविध नहीं,
तो सुरति निरत थिर क्या जनि।
जो सुरति निरत थिर हो न सका,
हरिनाम को किस बिधि पहचाने।।
काली घटा उठने पै,
काली होती जाती है।
सुराही जो भरी हरिनाम,
खाली होती जाती है।।
हरिनाम बागवां ने खुद,
जलाया है चमन।
शम्अ-शोले-बर्क क्यों,
बदनाम किये जाते हैं।।
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Date: 02.01.2025
खुदाई वख्शिशे गुलजार हो,
तेरे नसीब में।
हरिनाम के हिस्से में,
बस खार जार है।।
बीरान घर, बौरान खुद,
परि खुद खुदा हाँसिल।
हरिनाम हकीकत पाके,
कुछ नहीं ख्वाहिश।।
Date: 03.01.2025
सबकी प्यास अपनी प्यास है,
हरिनाम यदि जाने।
सारे जहां में फिर कोई,
दुख हो नहीं सकता।।
उम्र भर की प्यास,
क्या जामों से बुझेगी।
हरिनाम सुराही लवो,
से लगा के पी।।
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हरिनाम जिस पर मर रहा, बो बात और है।
लेखक की लेखनी न, तूलिका का दौर है।।
मुर्शिद जो बोलता है, बो सदा और है।
हरिनाम जिस पर मरता,बो अदा और है।।
04.01.2025
गरम हो रही है, गरम हो रही है,
ये दुनिया गरम हो रही है।
हरिनाम हालत पर मेरी प्रक्रिया नरम हो रही है।।
हरिनाम सादगी पर, मर ना जाए ऐ खुदा।
लड़ते समर में कोई, शमशीर हाथ में नहीं।।
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खिलकत खजक की ख्वाहिश की खातिर खालिक से ख्याल लगाए हैं बैठी!
खजिल नाजनीना मुख्तालिक मुकामाते
नजर मेहर आलूद हरिनाम कोई!!
दुनिया की हसरतों से हरि नाम का नाता नहीं।
दिलबर के दर के सिवा कोई और दर भाता नहीं।
गुरु का सच्चा प्यार है,
परमार्थ की जान।
झूठा प्यार जहान का,
हरिनाम न रह अनजान।।
हरिनाम भक्त के चार गुण,
प्रकट दिखाई देय।
सत्य धर्म अधीनता,
पर दुख को हर ले लेय।।
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Date: 05.01.2025
दिलों से गुजर जाने का है,
रूहानियत का रास्ता।
आहिस्ता आहिस्ता हरिनाम चलता चल।।
हरिनाम दिल की दुनिया,
मुहब्बत से बसाओ।
आबाद नजर आयेगी,
उजड़ी हुई दुनिया।।
Date: 06.01.2025
बाहर उदकी पखारे ,अंतर विविध बिकार।
हरिनाम कहे क्यों चूके, कुंजर बिधि व्यावहार।।
मोनी बेदी सबदी नादी ,बन खंड जोग जगाए।
हरिनाम कभी ना पा सके, चाहे कन्द मूल फल खाय।।
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बाहर उदकी पखारे ,अंतर विविध बिकार।
हरिनाम कहे क्यों चूके, कुंजर बिधि व्यावहार।।
मोनी बेदी सबदी नादी ,बन खंड जोग जगाए।
हरिनाम कभी ना पा सके, चाहे कन्द मूल फल खाय।।
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वक्त का मजा लिया, और ले रहे हैं।
हरिनाम किस गफलत में, तुम सो रहे हैं।।
हरिनाम रात रानी जोड़े से, मिलती है।
जिस्मानी रूहानी,बहुत लाभ देती है।।
07.01.2025
सख्त की मुहर वक़्त पर लगेगी,
तख्त की हुकूमत संकट हरेगी ।
हरिनाम खुद खुदा की लज्जत बढ़ेगी,
बक बक करने की न हिम्मत पड़ेगी।।
मेरे लखते जिगर मेरे लखते जिगर,
आजा इधर तु जाता किधर
अब भी सुधर मेरे लखते जिगर……
कर खुदा का जीकर….
हरिनाम हरजी मंडल से मालूम पड़ेगी
मेरे लखते जिगर…..
कन्दला में जाकर ग्रंथी खुलेगी ।
अलहिन्द जाकर बुलंदी बनेगी
मेरे लखते जिगर मेरे………
कुछ नहीं कुछ नहीं कुछ नहीं,
हरिनाम अमल के बिना कुछ भी नहीं।
वाह रे वाह मुर्शिद क्या कमाल नजर आता है।
गबरू नजर आता कभी हरिनाम नजर आता है।।
अक्ल दौड़ाते बहुत, उनके साथी हम नहीं।
हरिनाम रात रोज़े, कयामत से कम नहीं।।
हरिनाम चंगी से अर्धांगि बनेगी।बहुरंगी से बहुसंगी बनेगी।।
08.01.2025
आशिक को माशूक बिन, पड़े न पल भर चैन।
हरिनाम हरी के दर्शन, होते हैं दिन रैन।।
मस्त होए विषयन में, मस्ताना कहलाय ।
हरिनाम वसाया दिल ना,दुनिया को वहकाय।।
मस्ती निगाहें नाज़ की,
अहदे – शबाब में।
चिरागे – बजम है हरिनाम,
खुदा खैर करे।।
नामें खुदा से नहीं जुदा,
हर वक़्त खुदाई आलम।
हरिनाम पीवे जाम बस,
मस्ते – शबाब का।।
आप तो इश्क चौसर का,
मजा लेता है।
हरिनाम औरो के जीवन को,
क्यों खोता है।।
09.01.2025
हे रमा पति, हे रमा नाथ।
जेवर ही नहीं तो तेवर क्यों।।
जिससे नाता कुछ है ही नहीं तो।
खामखा का तेवर क्यों।।
दण्ड विधान है ही नहीं तो,
जैल बनी है- सेबर क्यों।
करते बाबैन शटल अंदर,
बाहर लोक लगाते क्यों।।
सावन मास घेवर ऊपर,
रबड़ी डाल खिलाते क्यों।
श्रृंगार सती का पति के लिए,
फिर वैश्या श्रृंगार कराते क्यों।।
यदि विचार मिलते ही नहीं,
खत्री- क्षत्री मेल मिलाते ही क्यों।
सोच समझ हरिनाम जरा,
मुह देखी बात कराते क्यों।।
विदेशी फूलों से सुगंध नहीं,
देशी फूलों में सुगंध बसी।
हरिनाम रूहानी बसरो को,
बिन फूलों के सुगंध आ रही है।।
सुगंध आ रही है, सुगंध आ रही है।
और तो और सुगंधा को भी,
सुगंध आ रही है।।
मेहनत कमाई चखी,
धन मिठास वह लेय।
हरिनाम हराम कमाई,
कुछ दिन में चल देय।।
अवगुण चर्चा और की,
जिस का बन गया काम।
निज अवगुण जाहिर करे,
संसय नहीं हरिनाम।।
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10.01.2025
प्रभु आते हैं गाँव, शहर संकेत बनाये।
इसी फेर के अंदर, समझ नहीं पाए।।
लंबाई चौड़ाई चार कोष, परिधि बारह कोष।
कल्क पर कल्की आते,अक्ल हुई क्यों ठोस।।
मूल वाणी पर ग़ौर करो, सम्भल ग्राम बताया।
टीका करने पर, सम्भल शहर जताया।।
इतना भी तुम समझ न पाए, फिर भी ज्ञानी बनते हो।
अजन्मा प्रभु की जगह, अपने को कल्की कहते हो।।
नाफे जमीन है कहा, कहा धमनी चौबीस।
हरजी मंडल कहा है, कहा पर है अलहिन्द।।
कहा छिपा वैराट, सुदर्शन चक्र कहा है।
कहा पर है अजनाव, भरत खण्ड कहा है।।
माध्यम है हरिनाम, इसलिए- समझाऊँ ।
जितना कलयुगी ज्ञान, धूल की तरह उड़ाऊ।।
ग़ज़ब हो गया 🌹हाय,🌹ग़ज़ब हो गया।
अजब हो गया 🌹हाय, 🌹ग़ज़ब हो गया।।
ग़ज़ब अजब हो गया,🌹हाय 🌹
अजब ग़ज़ब हो गया।
हो गया हो गया, हरिनाम बहुत ग़ज़ब हो गया।।
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जा रही जा रही, मेरी जां जा रही है।
हरिनाम मिलने को, मखलूम आ रही है।।