युग गणना

  • युग गणना
  • सुखसागर श्रीमद्भागवत टीका सालिगराम के अनुसार कलियुग का मान 1000 दिव्यवर्ष होता है।
  • कलियुग 1200 दिव्य वर्ष का होता है।
  • नारद-विष्णु पुराण के अनुसार कलियुग 3,60,000 (तीन लाख साठ हजार) वर्ष का होता है।
  • पंचांग आदि में कलियुग का मान 4,32,000 (चार लाख बत्तीस हजार) वर्ष मानकर धर्मगन्थों की टीकायें की गयी हैं।
  • नोटः इन चारों प्रकार की युग गणना में किसको सत्य मानें, इसमें कौन गलत कौन सही है।
  • धर्मग्रन्थों में वर्णित ये चारों प्रकार के युग सत्य हैं।
    • कलियुग का मान 1000 वर्ष
    • ब्रह्मा जी का वर्ष 360 दिन का
    • इस प्रकार 1000 गुणा 360 बराबर 3,60,000 मानवीय वर्ष होंगे। किसी भी धर्मगन्थ में इन्हें दिव्यवर्ष नहीं लिखा है।
    • ध्यान रहे संधि संध्यांश के 200 वर्ष जोड़कर कलियुग का मान 1200 दिव्य वर्ष हुआ। अतः 1200 गुण 360 बराबर 4,32,000 मानवीय वर्ष होगा।
      • बोला जाता है- सतयुग, त्रेता, द्वापर, कलियुग । जब आप सतयुग को पहला युग मानेंगे तो दूसरे नंबर पर त्रेता कैसे आ गया ?
      • सिद्धान्त- अंकानाम् वामतो गति। जब अंक लिखते हैं तो बायीं तरफ में जाते हैं। दायीं तरफ में कलियुग आता है। इस प्रकार-
        • पहला युग- कलियुग
        • दूसरा युग – द्वापर
        • तीसरा युग – त्रेता
        • चौथा युग – सतयुग हुआ।
        • सिद्धान्त कलि संख्याने प्रथमः।
        • दृष्टांत जब कोरे सिले हुए कपड़े पहने तो सतयुग, थोड़ा गन्दा हुए तो त्रेता, थोड़ा और गन्दे हुए तो द्वापर और बिल्कुल गन्दा हो जाने पर कलियुग हो गया।
        • विपरीत क्रम जब आप गन्दे कपड़े को धोयेंगे तो पहले थोड़ा साफ होगा, दुबारा में कुछ अधिक साफ, तीसरी बार में और अधिक साफ और चैथी बार में ज्यों का त्यों स्वच्छ हो जायेगा।
          • युग सभी समान होते हैं, (युग समीष्यति) कोई छोटा या बड़ा नहीं होता। जैसे- किसी व्यक्ति के लड़के की सगाई हुई और सगाई में चार व्यक्ति बैठे हुए हैं। सगाई की खुशी में बांटी गयी मिलनी का पहला रुपया माना महाराज जी को मिला, दूसरा रुपया सनेही को दिया, तीसरा मनोज को दिया और चैथा रुपया ललित को दिया तो लेने वाले प्रत्येक व्यक्ति पर तो एक ही रुपया है। 1, 2, 3, 4 तो देने वाले से जा रहा है, इसलिए सभी युग समान होते हैं।
          • कलियुग से द्वापर को दूना, त्रेता को तिगुना, सतयुग को चैगुना कहना शास्त्रों से विपरीत आचरण करना है। अतः एक युग का समय 1000 वर्ष और 200 वर्ष सन्धि-संध्यांश के बराबर 1200 वर्ष हो गया। इस प्रकार चारों युगों का 1200 गुणा 4 बराबर 4800 वर्ष एक चतुर्युगी का संधि-सन्ध्यांश सहित समय हो गया। ध्यान रहे पुनरावृत्ति क्रम के अनुसार पचास वर्ष की संधि होती है, अतः चारों युगों के 50 गुणा 4 बराबर 200 वर्ष का संधि, इस प्रकार 4800 + 200 बराबर 5000 वर्ष। संधि का आधा संध्यांश 25 वर्ष का होता है, अतः चारों युगों का संध्यांश 25 गुणा 4 बराबर 100। इसलिए 5000+100 = 5100 वर्ष।
          • आधे चैत्र 1999 को यह समय पूर्ण हो गया है जिसकी तारीख 17 मार्च 1999 है।
          • यहां से एक संवत् बदलता है। भारतीय संस्कृति के अनुसार गतः कलि 5100 भोग्यकलि।
          • ध्यान रहे इसमें चारों युगों में कलियुग को भोगते हुए कलियुग खत्म है।
          • 2 साल का हर युग में संगम युग होता है। इसमें शक्तियों का आगमन मिलने तथा बिछुड़ने का क्रम होता है। अगर देवता, देवियां देते हैं तो शिव-शक्ति एक होगी (छोटी शक्तियों क क्रम में) जो गुरू सत्ता का प्रतीक है।
          • शंकर भगवान ने कहा था कि देवताओं द्वारा दी गयी अपनी-अपनी शक्ति से उसका एक रूप बनेगा- काली। काली ने ही तो दुष्टों का नाश किया था। भगवान विष्णु को कहा तुम इन माँओं को लाओ तो नाम दिया- माला।
          • जिसका मुसलमानों के अनुसार समय उर्स का 786 दिया जाता है जिसे मुसलमान शुभ मानते हैं। यह समय 1998-99 में पड़ चुका है। कल्कि अवतार के नीले घोड़े वाला क्रम हो चुका है। आगे धर्मग्रन्थों के लेख के अनुसार निष्कलंक अवतार की भूमिकान्तर्गत महिमामय रूप में प्रकट होगा तथा सारे संसार में आध्यात्मिक ज्ञान का व्यक्तिगत अनुभव देकर राजर्षि सिद्ध होगा। क्योंकि युग परिवर्तन का कारण राजा होता है। हर प्रकार के कष्टों का निवारण कर सुख समृद्धि का शासन स्थापित करेगा।
          • भगवान विष्णु को ही माला का सुमेरू कहते हैं। सु का अर्थ है अच्छा, मे का अर्थ है जिसके पास और रू का अर्थ है देवी। दुनिया कुछ भी कहे वह अच्छा है जिसके पास देवी हैं। सुमेरू को नादसेली भी कहते हैं। 8 अष्टांगी, 64 योगिनी, 5 मूल प्रकृति, 31 उपत्य देवी कुल मिलाकर 108 होती हैं। जब 108 माँ हैं तो बाप कौन है?
          • बूढ़े विष्णु को पुराण पुरूषोत्तम कहते हैं। अतः देवियां बूढ़े के पास ही रहती हैं। क्योंकि नारी जाति का संरक्षक भगवान विष्णु ही हैं।
          • नोट 2-2 साल का संगम युग लेने से 2 गुणा 4 बराबर 8 वर्ष हो गया। आधा चैत्र 1999+8 = आधा चैत्र 2007 को पूरा करते हुए आधे चैत्र 2008 को संगम पूरा होगा, दिनांक 6 अप्रैल 2008।
          • नोटएक छोटा युग 5 वर्ष का होता है (बर्ताने के क्रम में)।
          • जब बृहस्पति कर्क राशि पर होंगे, पुष्य नक्षत्र की अमावस होगी, चन्द्रमा, सूर्य, बृहस्पति एक राशि पर एक होंगे। 19 जून 2014 में बृहस्पति कर्क राशि पर आ चुके हैं। अतः सावन की अमावस 26 जुलाई 2014 को पुष्य नक्षत्र की अमावस होते हुए गुरू, सूर्य कर्क राशि पर स्वाभाविक रूप से विद्यमान हैं। चन्द्रमा 5 बजकर 25 मिनट पर कर्क राशि में आ चुका है, यहां से सतयुग बर्ताने का प्रावधान है।
          • 3102 ईसापूर्व में 2 बजकर 27 मिनट 30 सेकण्ड पर कलियुग शुरू हुआ। वर्तमान में 2014 चल रहा है। अतः 3102+2014=5116, इसलिए 5100 भोग्यकलि चल रहा है। जिसका संवतसर कीलक नामक संवत्सर पर है।
          • मनवन्तर के हिसाब से युग गणना 71 सही 6 बटे 14  । अतः 71 गुणा 14 = 994 + 6 = 1000 (एक युग गणना)
          • एक छोटा युग 5 साल का होता है। 71 युग का हिसाब लगाने पर 71 गुणा 5 बराबर 355 । 14 मनवन्तर होते हैं, इसलिए 355 गुणा 14 बराबर 4970। 14 मनवन्तरों को एकीकरण करने पर 15 सन्धि हुई तो 15 गुणा 2 बराबर 30 । अतः 4970+30=5000 वर्ष, आगे की गणना पूर्ववत् है।
          • कुछ पुराणों के वर्णन के अनुसार युग का समय 60 हजार महीने का होता है। अतः 60,000/12=5000 वर्ष। आगे की गणना पूर्ववत् है।

सूरदास जी की भविष्यवाणी के अनुसार-

रे मन धीरज क्यों न धरै।

एक सहस्र नौ सौ के भीतर एैसौ योग परै।।

शुक्ला जयनाम संवत्सर, छठ सोमवार परै।

हलधर पूत पमार घर उपजे, देहरी छत्र धरै।।

म्लेच्छ राज की सबरीसेना, आप ही आप मरै।

सुर सबहि अनहोनी होइहै, जग में अकाल परै।।

हिन्दू, मेगल, सिख सब नासैं, कीट पतंग जरै।

सौ पै सुन्न, सुन्न के भीतर, आगे योग परै।।

सहस्र वर्ष व्यापै सतयुग, धर्म की बेल बढ़ै।

सूरदास यह हरि की लीला, हाटी नाय हटै।।

  • ध्यान रहे 28 मई 2001 में सोमवार, जयनाम संवत्सर, शुक्ल पक्ष की छठ पड़ी है एवं माला बनाने का क्रम 1998-99 में ही पड़ा था जिसकी व्याख्या कर चुके हैं। आगे विनाश फिर सतयुग बर्ताने का प्रावधान होगा।