बृह्म बल – क्षत्र बल की एकता
तीछोपयो ब्राहम्ण हेति मंतो यामस्यन्ति शरव्यामं ३ नशा मर्शा !
अनुहाय तपसा मन्युना चोत दुरादव मिन्दत्ये नमः !!
अथर्व वेद- ५ – १८ – ९ ,
भावार्थ :- “ जिसके वाण तीखे हों, जो हथियार धारण करते है ! ऐसे ब्राहमणों के फेंके हुए, ज्ञान शस्त्र व्यर्थ नहीं जाते ! वे तेजस्वी बल के साथ शत्रु का पीछा करते हैं ! और निश्चय ही दूर से भेदन कर देते है ! ”
तत्र वृह्म च क्षत्रं च सम्यव्चो चरता सह !
तै ल्लोंकं पुण्यं प्रसेयं यत्रदेवा: सहा गिन्ना !!
यजुर्वेद – २०/२५
भावार्थ :- “ जहां ब्रह्म बल और क्षत्र बल साथ – साथ अच्छी तरह प्रीति
युक्ति होकर व्यवहार में लाये जाते हैं ! जहाँ देवता अग्नि के साथ रहते हैं वही देश पुण्य लोक होता है !! ”